Sunday, 1 December 2013

मनुष्य में सकारात्मक(positive) परिवर्तन का सूत्र


देश के लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने के लिए युग ऋषि पंo श्री राम शर्मा आचार्य ने जीवन – मन्त्र दिए | ‘मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण’ के लक्ष्य को सामने रख कर उन्होंने न केवल सामान्य व्यक्ति की समझ में आने वाले साहित्य का लेखन किया, बल्कि लोगों को मेहनत और सेवा का पाठ सिखाने के लिए शांतिकुंज आश्रम में लोगों को प्रशिक्षित किया | उनके द्वारा दिए गए अनमोल सूत्रों में से एक है हर दिन नया जन्म हर रात नयी मौत यानि की अपने जीवन के हर पल की कीमत को समझते हुए उसका सदुपयोग करना | हर दिन ऐसे जीवन जीना, जैसे नया जन्म मिल गया हो और रात्रि में निद्रा की गोद में ऐसे प्रवेश करना, जैसे उस जीवन का अन्त हो गया हो | इसके साथ ही यह आत्मसमीक्षा(self analysis) भी ज़रूरी है कि हमसे आज के दिन जो भूलें एवं गलतियाँ हुई हों, भगवान उन्हें क्षमा करें | अगले दिन भगवान को अपने  नए जन्म के लिए धन्यवाद, उनसे आशीर्वाद एवं मार्ग दर्शक के रूप में प्रार्थना करें |

इस छोटे से जीवन सूत्र को व्यक्ति यदि अपने व्यावहारिक जीवन(practical life) में अपना लें तो उसके जीवन में सकरात्मक परिवर्तन की शुरुआत हो सकती है और वह अपने वर्तमान जीवन को अच्छे ढंग से जीना सीख सकता है |   

Tuesday, 26 November 2013

Quotes by Swami Vivekanand








माँ ! मुझे मनुष्य बना दो”

“गर्व से कहो कि मैं भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है; भारत का समाज मेरे बचपन का झुला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है | भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा कल्याण है; और रात दिन कहते रहो – हे गोरी नाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो, माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो | माँ ! मुझे मनुष्य बना दो” – यह स्वमी विवेकानंद स्वदेश मन्त्र है, जिसको केवल पढने से ही मन में देशभक्ति की भावना जाग उठती है |
आज हमारे देश की अधिकांश पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अपरिचित है | हमारे देश के अधिकांश लोग यह भी नहीं जानते कि देशभक्ति क्या होती है? देश को आज़ाद करवाने वाले लोग कौन थे? उन्होंने अपने प्राण देश के लिए क्यों न्योछावर कर दिए? उनके अन्दर कैसा जज्बा था, कैसा उत्साह था कि वे देश के लिए कुछ भी करने को तैयार थे?

आज हमारा देश स्वतंत्र होने के बावजूद अनगिनत समस्याओं से जूझ रह है | बेकारी की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, महंगाई की समस्या, अन्न जल की समस्या, प्रदुषण की समस्या और न जाने कितनी ऐसी समस्याएँ है, जिनसे हमारे देश की जनता प्रभावित है फिर भी युगनायक स्वामी विवेकानंद ने यही कहा कि हमारा देश उठेगा और इन्हीं लोगों के बीच से ऊपर उठेगा | देश को ऊपर उठने के लिए विकास करने के लिए पैसे से ज़्यादा ज़रूरत होसले की है, ईमानदारी की है प्रोत्साहन की है और सकारात्मक विचारों की है इसलिए जितना हो सके महापुरुषों के जीवन को पढ़ें और प्रेरणा लेकर अपने अंदर मनुष्यत्व का विकास करें | 
      

Sunday, 24 November 2013

अहंकार या स्वाभिमान

‘अहं इति करोति’ अर्थात् यह मैंने किया है, जब हम एसा सोचते हैं की जो कम हम कर रहे हैं उससे हमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता तब हमारे अन्दर अहंकार जन्म लेता है | एक बार कृष्ण जी राधा को गोद में उठा कर ले जा रहे थे | अचानक ही राधा के मन में विचार आया की भगवान सबसे अधिक मुझसे प्रेम करते हैं, एसा सोचते ही उनके मन में अहंकार भर आया की और सहसा ही उन्होंने भगवान को टांग मारी | राधा की यह मनोदशा भगवान समझ गये और राधा को वहीं छोड़ कर गायब हो गए | राधा के बहुत प्रायश्चित के बाद भी उन दोनों का मिलन नहीं हो पाया | विद्वान होने के बाद भी अहंकार तो रावण का भी नहीं टिका | उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा |
मन में तारीफ की इच्छा होना घमंड का एक मात्र लक्षण है |जिसके होने पर दूसरों को आकर्षित करने के लिए इंसान कुछ ऐसी हरकतें कर बैठता है जो उसे नहीं करनी चाहिए | सफलता की राह पर अहंकार को एक बाधा के रूप में देखा गया है | जब हम यह सोच लेते हैं की हम सब जान गए हैं तब हम अपने आगे बदने का रास्ता बंद कर स्वयं ही पतन का द्वार खोल देते है |
जिस तरह अभिमान के होते हुए हम सफलता का द्वार नहीं खटखटा सकते उसी तरह स्वाभिमान के बिना भी वहाँ तक पहुँच पाना कठिन है उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए स्वाभिमान का होना उतना ही आवश्यक है, जितना की जिंदा रहने के लिए साँस लेना | एसा भी न हो की दूसरों के द्वारा की गई प्रशंसा हम पर हावी हो और ऐसा भी न हो की दूसरों के कटुवचनों से हम अपने स्वाभिमान को रौंद दे |
जीवन संतुलन का नाम है, इसमें हर एक वास्तु का अतिवाद बुरा है अपने आप पर अधिक मात्रा में विश्वास होना भी बुरा है और बिल्कुल ही न होना भी बुरा है |

अहंकार और स्वाभिमान की लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए समय-समय पर अपने आपको टटोलते रहना चाहिए | ऐसे विचारों का प्रवाह तुरंत रोक देना जिससे अहंकार आने का प्रतीत होता हो और स्वाभिमान के नष्ट होने का प्रतीत होता हो | साथ ही हमें भी ईमानदारी से देखना चाहिए की जो बुराईयाँ हम दूसरों में देखते है कहीं वह हममें तो नहीं और अगर एसा है तो जो सुधार हम दूसरों में चाहतें है पहले वो खुद में करें |  

Sunday, 7 April 2013

उठो जागो !!!



यूँ तो संसार में ऐसे भविष्यवक्ता तो बहुत से हैं जो हाथ देखकर यह बता देते हैं कि तुम्हारा विवहा कब हो जाएगा, पैसा कब आएगा, कब क्या हो जाएगा आदि | इसी तरह जन्म पत्री बनाने वाले बहुत से लोग हैं किन्तु दुनिया में एक एसा व्यक्ति भी रहा है जिसने संसार की राजनीति के बारे में लिखा है | जिसमे से आठ सौ भविष्यवाणियाँ सही हो चुकी है | एक हज़ार साल पहले स्थूल रूप में जो विद्यमान थे वे थे नोस्ट्राडेमस | उन्होंने ऐसी भविष्यवाणियाँ की जो एकाएक सौ फीसदी सही हो जाती थी | ब्रिटेन का तब नामोनिशान नहीं था | जब नोस्ट्राडेमस पैदा हुआ था तब स्कॉटलैंड था, इंग्लैंड था, पर ब्रिटेन नही था, लेकिन उन्होंने लिखा था की ब्रिटेन बनेगा और अमुक दिनों तक राज्य करेगा और सन् 1942 में उसका सिराज बिखर जाएगा और अब जितना भी उसका राज्यमंडल है सब ख़तम हो जाएगा | उनका एक एक अक्षर सही सिद्ध हुआ | नोस्ट्राडेमस ने हिंदुस्तान के बारे में भी व्याख्या की है | इस व्याख्या में भारत देश की आज़ादी का जो वर्णन हुआ है उसका वास्त्विकरूप हमने अपने इतिहास में पढ़ा है और हमारे बड़े बुजुर्गों ने अपनी आँखों के सामने घटते देखा है | इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बारे में वे एक हज़ार साल पहले ही लिख चुके थे जो की बाद में सब कुछ सच निकला | उन्होंने हिंदुस्तान के बारे एक और भविष्यवाणी भी की है वो यह है की हुन्दुस्तान का अध्यात्म और पाश्चात्य का तत्व विज्ञान आपस में मिल जायेंगे |  नोस्ट्राडेमस ने यह भी लिखा है कि भारत सारी दुनिया का नेतृत्व करेगा जैसा की आज अमेरिका कर रहा है | चाहे वह बम बनाए, चेलेंजर बनाये या स्टार वार की योजना बनाए किन्तु बाद का नेतृत्व भारत करेगा |
इन सब की ज़िम्मेदारी युवाओं के कंधे पर सौंपी जाएगी | इन युवाओं का चुनाव उनका व्यक्तित्व तय करेगा | यदि कोई व्यक्ति अपना सहयोग इस शुभ कार्य में देना चाहता है तो उसे अपना ध्यान बनावटी वस्तुओं से हटा कर अपने आपको गढ़ने में लगाना होगा | यहाँ व्यक्तित्व का अर्थ कैसे भी करके ऊँचे पद पर पहुँचबा नहीं है बल्कि सही रास्ता अपनाते हुए पूरी ईमानदारी के साथ अपनी मंजिल तक पहुँचना है | अपने आपको महामानव की स्थिति में ले जाना है और अपने में देश भक्ति को जागृत करना है |

Friday, 29 March 2013

रंग में भंग



Hkkjr esa gj lky gksyh dk R;kSgkj [kwc /kwe/kke ls euk;k tkrk gS ;k fQj ;wa dgsa fd R;kSgkj dh vkM+ esa u’ksckth dk /ka/kk [kwc /kwe/kke ls pyk;k tkrk gS A ‘kjkc vkSj vU; u’khys inkFkksZa dh ekax dqN fnu igys ls gh dbZ xquk vf/kd c<+ tkrh gSA >kj[kaM okbu MhylZ ,lksfl,’ku (tsMcY;qMh,) ds vuqlkj ;g irk pyk gS fd dbZ ckj ekax ds vkxs lIykbZ Qhdh iM+ tkrh gS A baVjusV ds ek/;e ls ;g tkudkjh Hkh izkIr gqbZ gS fd 27 ;qodksa us u’ks dh gkyr esa nq?kZVukvksa dks U;kSrk fn;k vkSj ekSr dh pisV esa vk x, A vkf[kj yksx dc le>saxs bl R;kSgkj dh ikou xfjek dks ?  



Friday, 15 February 2013

YESTERDAY, TODAY AND TOMORROW


Satyug Era – The era of divinity, purity, and morality where there was no difference between caste, religion and sex. It is said that in Ashoka’s period (300 B.C) if a beautiful woman wishes to go during night carrying a basket with lots of gold than she can easily reach her destination without any harm or fear. At that time women were also played excellent role in education. A lady named Gargi had ‘shastrart’ with ‘rishi munis’ (knowledgeable saints). During Later Vedic period woman started loosing her hold in the society. She was not allowed to attend any public meeting still she had respectable image. 

Gradually the whole era turned into male dominating society which brought many evil practices like sati system, dowry system and female feticides etc. It was peak time of dominance and exploitation. People like Raja Ram Mohan Roy and Swami Dayananda came up and abolished all evil practices. As a result at present women is enjoying respectful position but situation is not same at all parts of country. Still there are some areas where a woman is being tortured physically, mentally and emotionally. Situation of female is like spring which is now compressed by male society. If you press a spring for a long period then there will be a time when it will jump off. Same situation might also happen with female section in the society. After a long exploitation they might jump off and lead the society. Dominance is always dangerous whether it is adopted by male or female. This time another Raja Ram Mohan Roy and Swami Dayananda may come and teach about equality which in result provide era of serenity like satyug or we can also say that satyug will be back.