Sunday 24 November 2013

अहंकार या स्वाभिमान

‘अहं इति करोति’ अर्थात् यह मैंने किया है, जब हम एसा सोचते हैं की जो कम हम कर रहे हैं उससे हमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता तब हमारे अन्दर अहंकार जन्म लेता है | एक बार कृष्ण जी राधा को गोद में उठा कर ले जा रहे थे | अचानक ही राधा के मन में विचार आया की भगवान सबसे अधिक मुझसे प्रेम करते हैं, एसा सोचते ही उनके मन में अहंकार भर आया की और सहसा ही उन्होंने भगवान को टांग मारी | राधा की यह मनोदशा भगवान समझ गये और राधा को वहीं छोड़ कर गायब हो गए | राधा के बहुत प्रायश्चित के बाद भी उन दोनों का मिलन नहीं हो पाया | विद्वान होने के बाद भी अहंकार तो रावण का भी नहीं टिका | उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा |
मन में तारीफ की इच्छा होना घमंड का एक मात्र लक्षण है |जिसके होने पर दूसरों को आकर्षित करने के लिए इंसान कुछ ऐसी हरकतें कर बैठता है जो उसे नहीं करनी चाहिए | सफलता की राह पर अहंकार को एक बाधा के रूप में देखा गया है | जब हम यह सोच लेते हैं की हम सब जान गए हैं तब हम अपने आगे बदने का रास्ता बंद कर स्वयं ही पतन का द्वार खोल देते है |
जिस तरह अभिमान के होते हुए हम सफलता का द्वार नहीं खटखटा सकते उसी तरह स्वाभिमान के बिना भी वहाँ तक पहुँच पाना कठिन है उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए स्वाभिमान का होना उतना ही आवश्यक है, जितना की जिंदा रहने के लिए साँस लेना | एसा भी न हो की दूसरों के द्वारा की गई प्रशंसा हम पर हावी हो और ऐसा भी न हो की दूसरों के कटुवचनों से हम अपने स्वाभिमान को रौंद दे |
जीवन संतुलन का नाम है, इसमें हर एक वास्तु का अतिवाद बुरा है अपने आप पर अधिक मात्रा में विश्वास होना भी बुरा है और बिल्कुल ही न होना भी बुरा है |

अहंकार और स्वाभिमान की लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए समय-समय पर अपने आपको टटोलते रहना चाहिए | ऐसे विचारों का प्रवाह तुरंत रोक देना जिससे अहंकार आने का प्रतीत होता हो और स्वाभिमान के नष्ट होने का प्रतीत होता हो | साथ ही हमें भी ईमानदारी से देखना चाहिए की जो बुराईयाँ हम दूसरों में देखते है कहीं वह हममें तो नहीं और अगर एसा है तो जो सुधार हम दूसरों में चाहतें है पहले वो खुद में करें |  

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