“गर्व से कहो कि मैं भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी
मेरा भाई है; भारत का समाज मेरे बचपन का झुला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की
काशी है | भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा
कल्याण है; और रात दिन कहते रहो – हे गोरी नाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो,
माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो | माँ ! मुझे मनुष्य बना दो” – यह स्वमी
विवेकानंद स्वदेश मन्त्र है, जिसको केवल पढने से ही मन में देशभक्ति की भावना जाग
उठती है |
आज हमारे देश की अधिकांश पीढ़ी स्वामी विवेकानंद
के विचारों से अपरिचित है | हमारे देश के अधिकांश लोग यह भी नहीं जानते कि
देशभक्ति क्या होती है? देश को आज़ाद करवाने वाले लोग कौन थे? उन्होंने अपने प्राण
देश के लिए क्यों न्योछावर कर दिए? उनके अन्दर कैसा जज्बा था, कैसा उत्साह था कि
वे देश के लिए कुछ भी करने को तैयार थे?
आज हमारा देश स्वतंत्र होने के बावजूद अनगिनत
समस्याओं से जूझ रह है | बेकारी की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, महंगाई की
समस्या, अन्न जल की समस्या, प्रदुषण की समस्या और न जाने कितनी ऐसी समस्याएँ है,
जिनसे हमारे देश की जनता प्रभावित है फिर भी युगनायक स्वामी विवेकानंद ने यही कहा
कि हमारा देश उठेगा और इन्हीं लोगों के बीच से ऊपर उठेगा | देश को ऊपर उठने के लिए
विकास करने के लिए पैसे से ज़्यादा ज़रूरत होसले की है, ईमानदारी की है प्रोत्साहन
की है और सकारात्मक विचारों की है इसलिए जितना हो सके महापुरुषों के जीवन को पढ़ें
और प्रेरणा लेकर अपने अंदर मनुष्यत्व का विकास करें |
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