Tuesday 26 November 2013

Quotes by Swami Vivekanand








माँ ! मुझे मनुष्य बना दो”

“गर्व से कहो कि मैं भारतवासी हूँ और प्रत्येक भारतवासी मेरा भाई है; भारत का समाज मेरे बचपन का झुला, जवानी की फुलवारी और मेरे बुढ़ापे की काशी है | भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण से मेरा कल्याण है; और रात दिन कहते रहो – हे गोरी नाथ ! हे जगदम्बे ! मुझे मनुष्यत्व दो, माँ ! मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो | माँ ! मुझे मनुष्य बना दो” – यह स्वमी विवेकानंद स्वदेश मन्त्र है, जिसको केवल पढने से ही मन में देशभक्ति की भावना जाग उठती है |
आज हमारे देश की अधिकांश पीढ़ी स्वामी विवेकानंद के विचारों से अपरिचित है | हमारे देश के अधिकांश लोग यह भी नहीं जानते कि देशभक्ति क्या होती है? देश को आज़ाद करवाने वाले लोग कौन थे? उन्होंने अपने प्राण देश के लिए क्यों न्योछावर कर दिए? उनके अन्दर कैसा जज्बा था, कैसा उत्साह था कि वे देश के लिए कुछ भी करने को तैयार थे?

आज हमारा देश स्वतंत्र होने के बावजूद अनगिनत समस्याओं से जूझ रह है | बेकारी की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, महंगाई की समस्या, अन्न जल की समस्या, प्रदुषण की समस्या और न जाने कितनी ऐसी समस्याएँ है, जिनसे हमारे देश की जनता प्रभावित है फिर भी युगनायक स्वामी विवेकानंद ने यही कहा कि हमारा देश उठेगा और इन्हीं लोगों के बीच से ऊपर उठेगा | देश को ऊपर उठने के लिए विकास करने के लिए पैसे से ज़्यादा ज़रूरत होसले की है, ईमानदारी की है प्रोत्साहन की है और सकारात्मक विचारों की है इसलिए जितना हो सके महापुरुषों के जीवन को पढ़ें और प्रेरणा लेकर अपने अंदर मनुष्यत्व का विकास करें | 
      

Sunday 24 November 2013

अहंकार या स्वाभिमान

‘अहं इति करोति’ अर्थात् यह मैंने किया है, जब हम एसा सोचते हैं की जो कम हम कर रहे हैं उससे हमसे बेहतर कोई नहीं कर सकता तब हमारे अन्दर अहंकार जन्म लेता है | एक बार कृष्ण जी राधा को गोद में उठा कर ले जा रहे थे | अचानक ही राधा के मन में विचार आया की भगवान सबसे अधिक मुझसे प्रेम करते हैं, एसा सोचते ही उनके मन में अहंकार भर आया की और सहसा ही उन्होंने भगवान को टांग मारी | राधा की यह मनोदशा भगवान समझ गये और राधा को वहीं छोड़ कर गायब हो गए | राधा के बहुत प्रायश्चित के बाद भी उन दोनों का मिलन नहीं हो पाया | विद्वान होने के बाद भी अहंकार तो रावण का भी नहीं टिका | उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा |
मन में तारीफ की इच्छा होना घमंड का एक मात्र लक्षण है |जिसके होने पर दूसरों को आकर्षित करने के लिए इंसान कुछ ऐसी हरकतें कर बैठता है जो उसे नहीं करनी चाहिए | सफलता की राह पर अहंकार को एक बाधा के रूप में देखा गया है | जब हम यह सोच लेते हैं की हम सब जान गए हैं तब हम अपने आगे बदने का रास्ता बंद कर स्वयं ही पतन का द्वार खोल देते है |
जिस तरह अभिमान के होते हुए हम सफलता का द्वार नहीं खटखटा सकते उसी तरह स्वाभिमान के बिना भी वहाँ तक पहुँच पाना कठिन है उन्नति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए स्वाभिमान का होना उतना ही आवश्यक है, जितना की जिंदा रहने के लिए साँस लेना | एसा भी न हो की दूसरों के द्वारा की गई प्रशंसा हम पर हावी हो और ऐसा भी न हो की दूसरों के कटुवचनों से हम अपने स्वाभिमान को रौंद दे |
जीवन संतुलन का नाम है, इसमें हर एक वास्तु का अतिवाद बुरा है अपने आप पर अधिक मात्रा में विश्वास होना भी बुरा है और बिल्कुल ही न होना भी बुरा है |

अहंकार और स्वाभिमान की लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए समय-समय पर अपने आपको टटोलते रहना चाहिए | ऐसे विचारों का प्रवाह तुरंत रोक देना जिससे अहंकार आने का प्रतीत होता हो और स्वाभिमान के नष्ट होने का प्रतीत होता हो | साथ ही हमें भी ईमानदारी से देखना चाहिए की जो बुराईयाँ हम दूसरों में देखते है कहीं वह हममें तो नहीं और अगर एसा है तो जो सुधार हम दूसरों में चाहतें है पहले वो खुद में करें |